जीवन (कविता) स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु-13-Feb-2024
दिनांक- 13.02.2024 दिवस- मंगलवार विषय-जीवन स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु
जीवन ईश्वर का दिया , है अनमोल उपहार। इसको सार्थक करने हेतु, करो उचित व्यवहार।
कब कैसे उपयोग है करना, यह हम पर है निर्भर। चाहें तो इसे बना दें नाला, चाहे तो इसे निर्झर।
गम्य नहीं समझें जीवन को, इसको समझें प्रस्थान। गम्य हुआ तो थम जाएगा, बन जाएगा बंजर स्थान।
कर्म, भ्रमण, सुखऔर दुख का, यह है एक अद्भुत योग। इसके राज को समझ लिया जो, पकड़े ना दुख, व्याधि कोई रोग।
जीवन के तुम अर्थ को समझो, इसका उद्देश्य तलाशो। जीव मात्र की प्राथमिकता यह, जीवन को ना कभी नाशो।
घर-परिवार और रिश्ते-नाते, मिलके इसे अनोखा बनाते। अनीति, अत्याचार गहें ना, हैं हमको ये सदा समझाते।
पाप- पुण्य और ऊँच- नीच का, यह अद्भुत है मेला। फूँक- फूँक के कदम को रखो, लगा है ठेलम ठेला।
एक बार ही मिलता जीवन, खुशी से इसको जीयो। खेलो-कूदो, हंँसी-खु़शी से, गरल कभी ना पीयो।
चार दिनों का है यह जीवन, हंँसी- ख़ुशी में गुजा़रो। नहीं किसी से बैर मोल लो, नहीं किसी को मारो।
किसी की आंँखें ना हों गीली, दुख में सबके होना साथ। ख़ुशी से सबको गले लगाना, रखना एक सुखद जज़्बात।
नेकी करो मिलेगी नेकी, बदी करो वो ही पाओगे। अंत काल में भवसागर से, पार नहीं तुम पाओगे।
सच्ची-सच्ची बात बताऊँ, गांँठ इसे तुम बाँध लो आज। बिगड़े के तुम काज बनाना, गिरेगा ना कभी तुम पर गाज़।
साधना शाही, वाराणसी
Shashank मणि Yadava 'सनम'
14-Feb-2024 08:27 AM
बेहतरीन अभिव्यक्ति और खूबसूरत भाव
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Madhumita
13-Feb-2024 10:48 PM
Nice
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Gunjan Kamal
13-Feb-2024 09:07 PM
बहुत खूब
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